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सोमवार, 20 जुलाई 2020

महर्षि चरक की जीवनी और चरक संघिता

  आयुर्वेद, आयुर्वेद के महर्षि चरक एवं चरक संहिता

 दोस्तों हम इस पोस्ट में आयुर्वेद महान आयुर्वेदिक महर्षि चरक चरक संहिता के बारे में जानेंगे

आयुर्वेद 

आयुर्वेद अथर्ववेद का एक उपवेद है।  यह मात्र चिकित्सा विज्ञान का शास्त्र नहीं है। आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक तो अमृत कलश धारी भगवान धन्वंतरी माने जाते हैं;  परंतु आयुर्वेद शास्त्र का जो ज्ञान वर्तमान में उपलब्ध है, उसके आधारभूत ग्रंथ दो ही हैं- 1, चरक संघिता और 2,  सुश्रुत संहिता ।  चरक का प्रादुर्भाव आचार्य सुश्रुत से पहले हुआ था ऐसा सर्वमान्य है।  इनकी एकमात्र ग्रंथ  का नाम है 'चरक संघिता'। 
चरक की जीवनी और चरक संघिता। आयुर्वेद ज्ञान
चरक के बारे मे

चरक शब्द का अर्थ 

 आयुर्वेद के आचार्य चरक पर विचार करने के पहले चरक शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी जानकारी होना आवश्यक है ऋग्वेद मे एक सूक्त  ही है 'चरैवेति चरैवेति'।  चलते रहो ,चलते रहो ।  सर्वप्रथम चरक का अर्थ था भ्रमण सील विद्वान या विद्यार्थी।  बृहदारण्यक उपनिषद में इसका उपयोग इसी अर्थ में हुआ है ।  इस नाम (चरक) से विशेषता या कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा का बोध होता है कृष्ण यजुर्वेद की शाखाओं में अकेले चरक संप्रदाय की ही 12 शाखाएं थी ।  चरक शाखा के पहले तीन भागों के नाम ईथिमिका मध्यमिक और अरिमिका है ।  वैशम्पायन ऋषी के अंतेवासी भी चरक कहलाते थे। वैशम्पायन ऋषी का संबंध कृष्ण यजुर्वेद से हैं।  और उनके संबंधित एक शाखा का नाम भी चरक हैं।  इस प्रकार स्पष्ट है कि आयुर्वेद में चरक शब्द का अर्थ  बृहदारण्यक उपनिषद की परंपरा से  ग्रहण किया गया है । 

चरक की उत्पत्ति मे मतभेद 

 कुछ विद्वान चरक को कुषाण वंश के सम्राट कनिष्ठ के समय का बतलाते हैं परंतु यह मत सर्वथा अनुचित है इसकी पुष्टि कहीं भी नहीं हुई है।

चरक संघिता 

 चरक संघिता कृष्ण यजुर्वेद की परंपरा में होने से उसी की तरह गद्य और पद्य में है। इसमें अग्नि पुराण के बहुत से श्लोक  मिलते हैं तथा आचार्य कौटिल्य के अर्थशास्त्र की भांति भिन्न-भिन्न आचार्यों के मत को दिखाकर आत्रेय ने अपने मत को स्थापित किया है । इसकी भाषा शैली भी बहुत कुछ अर्थशास्त्र से मिलती जुलती है वास्तव में चरक संघिता महर्षि पुनर्वसु द्वारा उपदेश की हुई उनके शिष्य अग्निवेश द्वारा बनाई गई चरक  द्वारा प्रति संस्कार की गई है

चरक की जीवनी और चरक संघिता। आयुर्वेद ज्ञान
चरक संघिता 


 आखिर चरक संहिता में है क्या इसकी आयुर्वेद संबंधी विषय वस्तु क्या है?  ऐसे प्रश्न उठना उपर्युक्त वर्णन के संदर्भ में सहज स्वाभाविक है।  आयुर्वेद किस आधारभूत ज्ञान ग्रंथ का क्षेत्र काय- चिकित्सा तथा सीमित है। इसलिए जहां पर भी दूसरे शास्त्र से संबंधित विषय आता है,  वहां पर या तो उस शास्त्र के  ज्ञाता से सहायता लेने का निर्देश दिया गया है अथवा विषय वस्तु का संक्षेप में प्रतिपादन किया गया है।

 चरक संघिता में जितने ऋषि यों का उल्लेख मिलता है उतना अन्य किसी भी आयुर्वेद ग्रंथ में नहीं मिलता।  यथा -जमदग्नि, वशिष्ठ, भृगु,  अगस्त्य आदि कुछ  ॠषी के नाम नए हैं। यथा वडिस शरलोमा,  काप्य, कैकशैय , हिरण्याक्ष ।  भारद्वाज के साथ कुमार सिर विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एकदम ने अन्य क्रिया विशेषण नहीं मिलता।


चरक के दर्शन 

 चरक ने प्रकृति और पुरुष को एक स्वीकार कर 24 तत्व  माने हैं। सांख्य दर्शन में पुरुष और प्रकृति को पृथक  मानकर 25 तत्व माने गए हैं। सांख्य  की भांति चरक संघिता मे ईश्वर  का उल्लेख नहीं है । चरक का मत वैश्विक और न्याय से बहुत कुछ मिलता है । चरक  संगीता में पुरुष पुनर्जन्म और रोग की प्रतिष्ठा आत्मा संबंधी प्रश्नों का विचार बहुत ही स्वतंत्र रूप से है। इसके अनुसार अस्तित्व का अर्थ है जो पुनर्जन्म  को माने । चरक में जन्म से जाति की कल्पना नहीं है, अध्ययन एवं क्रम में जांच उत्पन्न होती है इसे ब्राह्मण भोजन का उल्लेख नहीं है।
 चरक संघिता में आहार संबंधी सूचना विवेचन हैं और अन्य पान की विशेष जानकारी दी गई है। 20 25 तरह के तो चावलों का ही उल्लेख है। तथा मान्स , शाक,  फल वर्ग आदि का वर्णन है। फलों में अनार के शिवाय अन्य का उपयोग नहीं है। केला का उपयोग विशेष स्त्री रोग में है।  अंगूर का उपयोग मुख्य रूप में है।  गौरस से बनी हुई दाही तक्र आदि  व गन्ना  का वर्णन भी चरक संघिता में दिया गया है। गुड  शर्करा मोटी मिश्री कालपी या मुल्तानी मिश्री का उल्लेख है मधु के चार प्रकार का वर्णन इसमें है हरित वर्ग में मूली आदि का उल्लेख है।
चरक की जीवनी और चरक संघिता।आयुर्वेद ज्ञान
चरक की जीवनी 


चिकित्सा व्यवस्था 

 चरक संघिता में बैरी तथा अन्य व्यक्तियों के लिए धन की आवश्यकता का उल्लेख है। अर्थात बिना धन के बिना साधन के जीवन बिताना सबसे बड़ा पाप है साधन के लिए धन एकत्र करें इसके लिए सज्जनों से सम्मानित व्यक्तियों का अवलंबन करने को कहा गया है। वेद के लिए धन का इतना महत्व नहीं है जितना मान और यश का चरक संहिता में स्थान स्थान पर वैद्य को मान और यश की रक्षा करने का विधान है। श्रेष्ठ  तथा परिश्रम से किसी और औषद के  सिद्ध होने पर उसका विज्ञापन और सूचना देने का भी उल्लेख है।


वैद्य होने की योग्यता 

 वेद के साथी कैसे होंगे,  इसका भी चरक ने उल्लेख किया है।  यह साथी ऐसे चुनें, जो सहयोगी, कला कुशल , धन-धान्य से संपन्न, परस्पर अनुकूल रहने वाले , सामान प्रकृति ,एक की आयु,   नित्य प्रति काम में संलग्न,  प्रियावादी, समान शील,गुणो से समन्वित हो।



निष्कर्ष

 उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि महर्षि चरक की संघिता आयुर्वेद का आधारभूत ग्रंथ है।  जिसमें इस शास्त्र का सांगोपांग वर्णन है चरक संघिता का सम्यक अध्ययन किए बिना कोई भी आयुर्वेदज्ञ या वैद्य बनने की सामर्थ नहीं रखता।

धन्यवाद 

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